गडासरु महादेव, चुराह वैली (चम्बा)

गडासरु महादेव, चुराह वैली (चम्बा)

अप्पर चुराह के उत्तर मे स्थित नोसराधार की गगनचुंबी पर्वत श्रृंखलाओ मे एक अनोखा स्थल विद्यमान है, रुद्र भगवान का अदभुत डल गडासरु महादेव. ये लगभग 3,470 m (11,380 ft) उंचाइ पर है. यह डल लगभग 2km के एरिया मे फ़ैला हुआ है. झील के दोनों ओर हरे भरे घास के मैदान है और उत्तरी साइड मे अलग-अलग प्रकार के पथरो का फ़र्श बिछा हुआ है मानो की जैसे की टाइल बिछाइ हो.
डल झील और बाई ओर हरे भरे घास की क्यारियां
डल झील से थोड़ा दूर बाइ ओर पर कुछ छोटॆ खेतो की तरह क्यारियां हैं. उन क्यारियो के उपर चलने और भी हैरान्गी होती है, ऐसा लगता है जैसे किसी मुलायम गददे पर चलरहे हो. प्रत्यक्ष-दर्शियो के अनुसार यहा डल और उसके आस-पास कई प्रकार के चमत्कार होते रहते हैं. इस डल से कोइ 1½km उपर एक अन्य डल है जो बिल्कुल काले रंग का है और बहुत डरावना है. उसे महाकाली डल कहते है. डल के पूर्वोतर के पहाड़ बिल्कुल शिवलिंग की तरह हैं. इस डल के उत्तर-पश्चिम मे आपस मे जुड़ी हुई दिखने वाली दो पर्वत चोटिया है जिन्हे ‘पाप-पुण्य’ के नाम से जाना जाता है.

मणिमहेश डल न्होण के साथ ही गडासरु महादेव का भी डल पर्व लगता है. चम्बा ज़िला की सभी डल-झीलो मे केवल यही एक ऐसी झील है जिसकी डलयात्रा परिक्रमा से होती है. इस डल यात्रा मे देवीकोठी की ओर से भी कइ श्रद्धालुओ ने जगह-जगह लन्गरो की व्यवस्था की होती है तथा उसी प्रकार परिक्रमा मे तीसा की ओर से गडासरू महादेव लंगर कमे


टी ने लंगर की व्यवस्था की होती है.
गडासरु महादेव कैसे पहुँचे :

चम्बा से 72km दूर चुराह घाटी का मुख्यालय भन्जराडु(तीसा) है. वहा से 25km की दूरी पर बैरागड़ गाँव है. यहा HPPWD का बहुत ही सुन्दर रेस्ट हाउस है.
बैरागड से 16km दूर चैंहणी पास पर देवीकोठी गांव है. यहा तक HRTC की बस सेवा उप्लब्ध है.इसके आगे की यात्रा पैदल ही है.
यात्रा:
डल यात्री अपना पहेला पड़ाव देविकोठी मे बैरावाली चामुंडा माता के एतिहासिक मंदिर के प्रांगण मे डालते है. दुसरे दिन प्रातः ही पैदल यात्रा शुरू हो जाती है, घने वनो की सुगन्धित पुष्प्-वाटिकाओ तथा विभिन्न वनोषधियो जडी-बुटिओ मे चलते हुए यात्री दूसरे दिन का पड़ाव ‘भ्रटा-किलोन’ नामक स्थान पर एक बड़े मैदान मे डालते है.
इससे अगलॆ दिन का सफ़र कष्ट्दाइक है.
तुषार-पर्वतो के बीहडो की चढ़ाइ को पार करते हुए डलयात्री रात को ‘गौरी-कुण्ड’ के पास गुफ़ाओ मे अपना पडाव डालते है. वहा से लगभग 1km की चढ़ाई पार करने के बाद डलयात्रिओ को दर्शन होते है, शंकर भगवान के अलौकिक डल “गडासरु महादेव” के डल्यात्रिओ की वापसी परिक्रमा से होती है.
डल से वापसी :
डल-स्नान तथा दर्शन के उपरान्त, डलयात्री “बान्दर घाटी” का दुर्गम मार्ग पार करते हुए, रात्रि का पड़ाव “नौसराधार” के मीलों फ़ैले हरे मैदान मे डालते है. घने जंगलो व खुले चारागो के बीच विचरण करते हुए दुर्लभ प्रजातियो के वन्य-जीव, पशु और पक्षी देखने को मिलते है. उस रात्रि का पड़ाव “गोय्या नाग मंदिर” के एक विशाल मैदान मे डालते हैं. यह मैदान गगनचुंबी काहलो जोत की पर्वतमाला के आंचल मे विद्यमान है. यहा का दिलकश नज़ारा हर किसी को अनायास ही सम्मोहित कर लेता है. मंदिर के प्रांगण मे सुगन्धित हवाये एक अलौकिक सुख का आभास कराती हैं.
उस मन्दिर से लगभग 3km नीचे काहलो जोत की तलहटी मे बाड़ा जंगल मे तांबे की खान है. बाड़ा गांव मे वन-विभाग का रेस्ट हाउस उप्लब्ध है.

उससे अगले दिन “जुन्गरा” पंचायत और “पधर” पंचायत के गांवों से होते हुए डलयात्री पुनः भन्जराडू(तीसा) मे पहुँच जाते हैं. 
इस यात्रा को भन्जराडू(तीसा) ओर से भी वाया नौसराधार व “बान्दर घाटी” वाले रास्ते से भी पूरा किया जा सकता है ।
और इस रास्ते बहुत ही रमणीय दर्शन देखने को मिलते हें ।

Comments

  1. Your website is not only good but also content also superb but still i am surprice your website well optimiezed how?
    Thank you

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Ramada Kasauli opening 2018

Destination Wedding - Near Delhi / Chandigarh / Ludhiana